ऋषि तिवारी
नोएडा। मेडिकल उत्कृष्टता का असाधारण परिचय देते हुए, फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा के नेफ्रोलॉजिस्ट तथा यूरोलॉजिस्ट की टीम ने उज्बेकिस्तान की 54-वर्षीय मरीज की जीवनरक्षक किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। मरीज किडनी फेलियर की समस्या से ग्रस्त थीं। मरीज का इससे पहले लिवर ट्रांसप्लांट भी किया जा चुका है और उस सर्जरी के लिए भी उनके बेटे ने ही अपने लिवर का एक हिस्सा डोनेट किया था। किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी तथा डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस नोएडा की कुशल देखरेख में की गई।
मरीज की इससे पहले पहले 2023 में लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई थी और उस मामले में उनका बेटा डोनर था। कुछ ही महीने पहले, उनके किडनी रोग से ग्रस्त होने का भी पता चला और उपचार के लिए दवाएं शुरू हो गईं। लेकिन इसके बावजूद उनकी हालत लगातार बिगड़ती रही।
लिवर ट्रांसप्लांट और इस वजह से इम्युनोसप्रेसिव दवाओं के सेवन के चलते, मरीज का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर था, और ऐसे में डायलसिस काफी जोखिमपूर्ण दीर्घकालिक समाधान था। पांच हफ्तों तक डायलसिस के बावजूद, उनकी हालत लगातार नाजुक बनी हुई थी और डायलसिस के कारण ब्लड प्रेशर अचानक कम होने के कारण उनके ट्रांसप्लांटेड लिवर को भी नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ गया था। मरीज के इम्युनो-कॉम्प्रोमाइज़्ड होने की वजह से बार-बार इंफेक्शन का खतरा भी था। ऐसे में किडनी ट्रांसप्लांट एकमात्र विकल्प बचा था, लेकिन उपयुक्त डोनर की तलाश करना किसी चुनौती से कम नहीं था।
इन तमाम चुनौतियों के बीच, मरीज के बेटे ने, जो कि पहले भी अपनी मां की जीवनरक्षा के लिए अपने लिवर का एक हिस्सा डोनेट कर चुके हैं, इस बार अपनी बायीं किडनी डोनेट करने का फैसला किया। फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा में यह ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया और अब मां तथा बेटा दोनों सुचारू रूप से रिकवर कर रहे हैं। बेटे को पांच दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी जिससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि उन लोगों के मामले में भी ऑर्गेन डोनेशन पूरी तरह से सुरक्षित होता है जो पहले भी अंगदान कर चुके हैं।
डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी, फोर्टिस नोएडा ने कहा, “यह मामला मरीज के पहले से लिवर ट्रांसप्लांट के चलते मेडिकल दृष्टि से चुनौतीपूर्ण था, जिसके लिए इम्युनोसप्रेसिव दवाओं के मामले में कुशल प्रबंधन और इंफेक्शन के जोखिमों को रोकने की आवश्यकता होती है। साथ ही, डायलसिस और पेरीऑपरेटिव पीरियड के दौरान मरीज के लिवर को भी सुरक्षित रखना तथा नई ट्रांसप्लांटेड किडनी की पूरी देखभाल भी जरूरी है। इस ट्रांसप्लांट की सफलता हमारी टीम की विशेषज्ञता और अंगदान में सुरक्षा दर्शाती है, साथ ही, इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिखाया है कि किडनी ट्रांसप्लांट का विकल्प किडनी बेकार होने की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ उपचार है।”
डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर, यूरोीलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, “इस मामले में जिस साहस और निस्स्वार्थ भाव का परिचय दिया गया, वह वाकई प्रेरणास्पद है। यह सिंगल डोनर के लिए एक ही रेसिपिएंट का जीवन दो बार बचाने का दुर्लभ मामला है, और यह मामला ऐसे मरीज में किडनी ट्रांसप्लांट करने से जुड़ी जटिलताओं को दिखलाता है जिनका पहले से लिवर ट्रांसप्लांट हो चुका है। मरीज की पिछली लिवर सर्जरी के एढेसिव भी मौजूद थे, जिसके कारण चीरा लगाना और अधिक मुश्किल हो गया था। इस मामले में सफल सर्जरी और
सुचारू रिकवरी वास्तव में, ऑर्गेन ट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में हुई प्रगति की ओर इशारा करती है और इस बात का भी प्रमाण है कि कैसे इससे मरीज को नया जीवनदान मिल सकता है। जो मरीज जो कुछ समय पहले तक मल्टी-ऑर्गेन फेलियर की समस्या से जूझ रही थीं, इस सफल सर्जरी के चलते अब हेल्दी और एक्टिव लाइफ बिता रही हैं।”
मोहित सिंह, ज़ोनल डायरेक्टर, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, “यह मामला मेडिकल उत्कृष्टता और दयाभाव के साथ मरीज की देखभाल का उल्लेखनीय उदाहरण है। ऐसे मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट करना जिसका पहले से ही लिवर ट्रांसप्लांट हो चुका हो, काफी चुनौतीपूर्ण था और इसके लिए तालमेल और सटीकता की आवश्यकता होती है। हमारी टीम ने सफल परिणाम सुनिश्चित करने के लिए इम्युनोसप्रेशन मैनेजमेंट और ऑर्गेन कॉम्पेटिबिलटी की जटिलताओं को पार किया। यह एडवांस ट्रांसप्लांट केयर और मरीजों के लिए नया जीवन प्रदान करने की फोर्टिस नोएडा की प्रतिबद्धता दर्शाता है।”
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