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भारत के प्रति अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का उदासीन रवैया

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संध्या समय न्यूज संवाददाता


अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां जैसे एसएंडपी, मूडीज और फिच भारत की आर्थिक ताकत को कम आंकती हैं और भारत सरकार के सॉवरेन डेट पेपर्स को निम्न निवेश की रेटिंग देती हैं, जो वास्तविकता से परे है। ये एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती को नजरअंदाज करती हैं। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में 12वें से 5वें स्थान पर छलांग लगाई है, फिर भी इन एजेंसियों ने भारत के सॉवरेन डेट को सबसे निचले निवेश ग्रेड या Junk रेटिंग दी है।

यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारत ने कभी भी अपने कर्ज दायित्वों में चूक नहीं की, फिर भी उसे हमेशा निम्न रेटिंग ही मिलती है। भारत का राजकोषीय घाटा भी संतोषजनक स्थिति में है। केंद्र सरकार का सकल राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.8% है, जबकि सभी राज्य सरकारों का घाटा 3.2% है, जो कई अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5% की दर से बढ़ी, जो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में सराहनीय है। हालांकि निजी क्षेत्र पूंजीगत व्यय में पीछे है, लेकिन सरकार ने इस कमी को पूरा किया है और सकल पूंजी निर्माण 31% है, जो एक बड़ी उपलब्धि है।

कुल कर्ज/जीडीपी अनुपात की बात करें तो जापान का 251%, अमेरिका का 123%, और चीन का लगभग 300% है, जबकि भारत का केवल 81% है। इस मोर्चे पर भी भारत की स्थिति मजबूत है। साथ ही, भारत की अर्थव्यवस्था में कर संग्रह में उछाल देखने को मिल रहा है। इसके बावजूद, अमेरिका जैसे उच्च राजकोषीय घाटे और भारी कर्ज वाली अर्थव्यवस्था को दूसरी सबसे ऊंची निवेश ग्रेड रेटिंग मिलती है।

भारत को इन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के साथ सक्रिय रूप से अपनी आर्थिक स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। यदि भारत को बेहतर निवेश ग्रेड रेटिंग मिलती है, तो यह इक्विटी और डेट दोनों में विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद करेगा, जो भारत की विकास यात्रा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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