Thursday, July 24, 2025
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रीढ़ की हड्डी में था क्रिकेट बॉल के बराबर का ट्यूमर, फोर्टिस ग्रेटर नोएडा के डाक्टरों ने किया सफल जटिल ऑपरेशन

ऋषि तिवारी


ग्रेटर नोएडा। फोर्टिस हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा की टीम ने एक ऐसा ऑपरेशन किया है, जो मेडिकल साइंस में बहुत कम देखने को मिलता है। ग्रेटर नोएडा निवासी 44 वर्षीय सुबोध कुमार की रीढ़ की हड्डी में मायक्सॉइड मूल का एक अत्यंत दुर्लभ और बड़ा ट्यूमर पाया गया, जो पीठ के ऊपरी हिस्से से लेकर सीने तक फैला हुआ था। भारत में इस तरह के मामलों की संख्या बेहद कम रही है।

यह ट्यूमर इतना अधिक फैल चुका था कि वह पूरी तरह व्हीलचेयर पर निर्भर हो गए थे। उन्हें दो महीने से ज्यादा समय से पैरालिसिस था, मूत्र और मल पर नियंत्रण पूरी तरह खो चुका था और मानसिक रूप से वह बुरी तरह टूट चुके थे।

शुरुआत में बीमारी को स्लिप डिस्क या स्पाइनल टीबी समझकर इलाज किया गया, जिससे सही इलाज में देरी हुई। हालात तेजी से बिगड़े और वे पेशाब, शौच, खाना खाने और चलने जैसे हर छोटे-बड़े काम के लिए पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर हो गए।

ट्यूमर का आकार एक क्रिकेट बॉल जितना था और वह रीढ़ से होते हुए छाती के अंदर मीडियास्टाइनम क्षेत्र तक फैल चुका था। इसे हटाना एक अत्यंत संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि यह स्पाइनल कॉर्ड से चिपका हुआ था।

ऑपरेशन का नेतृत्व डॉ. हिमांशु त्यागी (निदेशक एवं प्रमुख, ऑर्थोपेडिक्स और स्पाइन सर्जरी) ने किया। उनके साथ डॉ. राजेश मिश्रा और डॉ. मोहित शर्मा की टीम भी इस जटिल सर्जरी में शामिल रही। यह ऑपरेशन करीब चार घंटे तक चला, जिसमें माइक्रोस्कोपिक सर्जरी, इंट्रा-ऑपरेटिव न्यूरोमॉनिटरिंग और इमेज गाइडेंस जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया।

डॉ. हिमांशु त्यागी ने बताया, “ट्यूमर एक बेहद नाज़ुक स्थान पर था और रीढ़ की नसों से चिपका हुआ था। ऑपरेशन के हर कदम पर हमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ी। इस सर्जरी में सबसे बड़ा खतरा था – स्पाइनल कॉर्ड को नुकसान पहुंचने का, जिससे स्थायी पैरालिसिस हो सकता था। साथ ही, ट्यूमर पूरी तरह हट न पाने, सीएसएफ लीक, इन्फेक्शन और फेफड़ों से संबंधित जटिलताओं का भी ख़तरा था। लेकिन हमारी टीम ने सटीक योजना, तकनीक और अनुभव के बल पर इस चुनौती को पार किया। सबसे बड़ी बात यह है कि मरीज अब बिना किसी सहारे के चल पा रहे हैं और उनका जीवन फिर से सामान्य हो गया है।”

सर्जरी के चार महीने बाद सुबोध अब रोज़मर्रा के सभी काम खुद कर रहे हैं — चलना, सीढ़ियाँ चढ़ना, शौच और पेशाब — किसी सहायता के बिना। उनका यह सुधार पूरी तरह से असाधारण माना जा रहा है। ऐसे ट्यूमर के सटीक कारण अब तक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन इसके पीछे संभावित वजहों में जेनेटिक म्युटेशन, पहले की गई रेडिएशन थेरेपी या कुछ कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि हो सकती है। अधिकांश स्पाइनल कॉर्ड ट्यूमर ‘आईडियोपैथिक’ होते हैं यानी उनका कोई निश्चित कारण नहीं होता और वे वंशानुगत भी नहीं होते। इस पूरे अनुभव पर सुबोध कुमार ने भावुक होते हुए कहा, “मैंने सोच लिया था कि अब जीवन खत्म हो गया है। लेकिन फोर्टिस ने मुझे दूसरी ज़िंदगी दी। आज मैं न व्हीलचेयर पर हूँ, न कैथेटर से बंधा। मैं चल पा रहा हूँ, अपने पैरों पर। मैंने अपना जीवन वापस पा लिया है।”

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