Tuesday, July 15, 2025
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Shri Shiv Mahapuran story_8 : अभिमंत्रित रूद्राक्ष के इस्तेमाल से जीवन की सारी समस्याएं होती हैं दूर : सद्गुरूनाथ जी महाराज

ऋषि तिवारी


नोएडा। महर्षि महेश योगी संस्थान द्वारा राष्ट्र की समृद्धि, शांति एवं विकास के लिए रामलीला मैदान, महर्षि नगर में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के आठवें दिन परम पूज्य सद्गुरूनाथ जी महाराज भक्तों को कथा सुनाते हुए कहा कि त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष के बिना शिव की पूजा अधूरी है। कंठ में रूद्राक्ष धारण करके ही श्री शिवजी की पूजा करनी चाहिए। रूद्राक्ष धारण करने से खुद को फायदा होता ही है और पूरे परिवार को भी होता है। अगर रूद्राक्ष आपके ह्रदय को छुंए तो आपको कभी भी हार्ट अटैक एवं मधुमेह की समस्या नहीं होगी। आजकल बाजार में कृत्रिम रूद्राक्ष भी आ गया है। हमारी संस्था विशुद्ध रूप से अभिमंत्रित की हुई रूद्राक्ष प्रदान करती है। अगर उसे रात में पानी में भिंगोकर डाल दें और सुबह उसका पानी पीने के बाद अनेक लोगों की बाई-पास सर्जरियां रूक गई है। अपने लोगों को स्पेशल सिद्ध की हुई रूद्राक्ष दिया हूँ।

मीडिया प्रभारी ए के लाल ने बताया कि शिव भक्तों को कथा सुनते हुए सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कहा कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था और इस दिन व्रत रखने और विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस बार महाशिवरात्रि पर शिव योग, सिद्ध योग, गज केसरी योग, धन योग और सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग भी बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व और बढ़ गया है।

महाशिवरात्रि के दिन गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति को धन और अनाज का दान करना बहुत लाभकारी रहेगा। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन दान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बेल पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा- भांग-धतूरा आदि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटा धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्मी लगाए एवं हाथ में त्रिशूल लिए हुए वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यु’ का बोध होता है। शीश पर गंगा और चन्द्र, जीवन एवं कला के द्योतक हैं। शरीर पर चिता की भस्मी मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।

श्री शिव महापुराण कथा के पावन अवसर पर श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव, अध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और कुलाधिपति, महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नालोजी, श्री राहुल भारद्वाज, उपाध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान, श्री अलोक प्रकाश श्रीवास्तव, युवराज, महर्षि महेश योगी संस्थान और श्री शिव महापुराण कथा कार्यक्रम के संयोजक रामेन्द्र सचान और गिरीश अग्निहोत्री, श्री शिव पुराणमहा कथा के मुख्य यजमान श्री एस. पी. गर्ग सहित हजारों भक्त उपस्थित थे।

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