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पुरानी गाड़ियों पर फ्यूल बैन के फैसले पर दिल्ली सरकार ने लिया U टर्न

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ऋषि तिवारी


नई दिल्ली। पुरानी गाड़ियों पर फ्यूल बैन के फैसले पर दिल्ली सरकार ने U टर्न लिया है। दिल्ली में अब पुरानी कार बेकार नहीं होगी बल्कि वो दौड़ेगी क्योंकि रेखा गुप्ता सरकार ने 1 जुलाई से लागू फैसलों को वापस ले लिया है। पेट्रोल पंपों पर अब पुरानी कार को भी ईंधन मिलेगा। पेट्रोल पंपों पर अब पुरानी कार सीज नहीं होंगी। अब उम्र के आधार पर कारों पर बैन नहीं लगेगा। क्योंकि गाड़ियों पर बैन लगाने और उन्हें पंपों पर ईंधन न देने के फैसले को लेकर आम जनता ने नाराजगी जाहिर कर रहे थे। दिल्ली में पुरानी गाड़ियों पर फ्यूल बैन को लेकर मामला गर्मा चुका था। इस मुद्दे पर लोगों की नाराजगी भी देखने को मिली है। इन सब को देखते हुए। सरकार ने इस आदेश पर रोक के लिए कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट को लेटर लिखा है।

फिर किस आधार पर होगी वाहनों पर कार्रवाई?
CM रेखा गुप्ता की सरकार द्वारा पुरानी कारों पर बैन के फैसले को वापस लेने के बाद पेट्रोल पंपों पर अब पुरानी कार को भी ईंधन मिलेगा। अब उम्र के आधार पर कारों पर बैन नहीं लगेगा। कारों पर पॉल्यूशन के आधार पर कार्रवाई होगी। 10 साल से पुरानी डीजल कार, 15 साल से पुरानी पेट्रोल कार और 15 साल से पुरानी स्कूटी, मोटरसाइकिल को भी पेट्रोल पंपों पर ईंधन मिलेगा।

क्या कह रहे एक्सपर्ट्स
बता दे कि दिल्ली में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के वास्तविक कारणों पर वैज्ञानिकों और पर्यावरण नीति विशेषज्ञों के बीच बहस तेज हो गई है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर कई वैज्ञानिक अध्ययनों का हिस्सा रहे सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने कहा कि वह उम्र के आधार पर वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की सिफारिश नहीं करता है। सीएसई ने कहा कि स्वच्छ हवा के अधिकार पर अपने दशकों लंबे अभियान में, सीएसई ने कभी भी उम्र के आधार पर निजी वाहनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की सिफारिश नहीं की है। बल्कि, उसने ईंधन और उत्सर्जन मानकों में सुधार करने की सलाह दी गई थी। आईआईटी दिल्ली और दिल्ली टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के साथ सीएसई के एक्सपर्ट्स ने प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) व्यवस्था में सुधार की वकालत की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सड़क पर वाहनों का रखरखाव ठीक से हो सके। इसके बजाय, हमने वाहनों के लिए फ्यूल और उत्सर्जन मानकों में सुधार की सिफारिश की है। इसमें 1990 के दशक के मध्य में बीएस-0 से लेकर 2020 में बीएस-6 की शुरूआत तक शामिल है।

नो फ्यूल पॉलिसी परेशान करने वाली
बता दे कि ग्रीन एक्टिविस्ट भावरीन कंधारी का कहना है कि नो-फ्यूल पॉलिसी ‘परेशान करने वाली’ है। यह पॉलिसी लोगों को पुरानी कारों को स्क्रैप करने और नई खरीदने के लिए प्रोत्साहित करती है। इससे सड़क पर वाहनों की कुल संख्या बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा कि स्वच्छ हवा नए वाहनों से नहीं आएगी बल्कि यह कम वाहनों से आएगी। इसका मतलब है कि प्राइवेट कार पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित करना है। कंधारी ने कहा कि एज बेस्ड बैन वास्तविक दुनिया के उत्सर्जन को अनदेखा करते हैं। एक पुरानी अच्छी तरह से रखरखाव की गई कार नए, खराब रखरखाव वाले वाहनों की तुलना में कम उत्सर्जन कर सकती है।

प्रिवेंशन सेंटर की सहायक प्रोफेसर दीप्ति जैन ने कहा
बता दे कि आईआईटी दिल्ली में परिवहन अनुसंधान और इंजरी प्रिवेंशन सेंटर की सहायक प्रोफेसर दीप्ति जैन ने कहा है कि किसी वाहन का टेल-पाइप उत्सर्जन वाहन की आयु, मेक, मॉडल, चलाए गए किलोमीटर और फिटनेस पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि यदि वार्षिक औसत किलोमीटर अधिक है, तो कोई यह उम्मीद कर सकता है कि प्रति किलोमीटर औसत उत्सर्जन नए वाहनों की तुलना में अधिक होगा। उत्सर्जन करने वाले वाहनों को छोड़ने के लिए आयु एक मानक बन जाती है। जैन ने कहा कि समस्या यह है कि वाहनों के लिए एक आधार रेखा निर्धारित की जानी चाहिए। पीयूसी सर्टिफिकेट प्राप्त करना मुश्किल नहीं है, साथ ही फिटनेस प्रमाणपत्र भी। तो मैं वास्तव में लोगों को पुराने वाहनों का उपयोग करने से कैसे रोकूं? मैं उम्र देखने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती।

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