संध्या समय न्यूज संवाददाता
बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन प्रक्रिया के पूरा होते ही जहां एनडीए ने एकजुटता का संदेश दिया है, वहीं तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व में बना महागठबंधन भीतरघात और भ्रम की राजनीति में उलझता दिख रहे है। 243 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन ने 254 उम्मीदवार उतार दिए हैं — यानि 11 सीटों पर अपने ही दलों के खिलाफ मुकाबला। सवाल अब साफ है — क्या एनडीए को घेरने की कोशिश में तेजस्वी (Tejashwi Yadav) खुद को ही तो नहीं घेर बैठे हैं?
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तेजस्वी की अगुवाई में महागठबंधन, लेकिन तालमेल नदारद
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने इस बार महागठबंधन को और व्यापक बनाते हुए कांग्रेस, वाम दलों, वीआईपी और अन्य छोटे दलों को साथ लाया। लेकिन सीटों के बंटवारे पर न तो तेजस्वी की निर्णायक भूमिका दिखी, न ही गठबंधन में समरसता दिखी। नतीजा ये कि नामांकन के बाद महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान अब सरेआम है।
तेजस्वी (Tejashwi Yadav) की आरजेडी 143 सीटों पर लड़ रही है, कांग्रेस 61 पर, माले 20, सीपीआई 9, सीपीएम 4, वीआईपी 15 और आईपी गुप्ता की पार्टी 3 सीटों पर। लेकिन इन आंकड़ों से ज्यादा चिंता की बात ये है कि तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की 11 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार मैदान में हैं।
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तेजस्वी के लिए ‘गठबंधन’ बना ‘घमासान’?
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने कांग्रेस से टकराव टालने की कोशिश की — खासकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के खिलाफ कैंडिडेट न उतारकर। लेकिन दूसरी ओर वैशाली, लालगंज, कहलगांव, और सिकंदरा जैसी कई सीटों पर आरजेडी बनाम कांग्रेस का सीधा मुकाबला बन गया है। तेजस्वी की कोशिश थी कि महागठबंधन एकजुट दिखे, लेकिन हकीकत ये है कि तेजस्वी की ही पार्टी के कैंडिडेट, कांग्रेस और वाम दलों से लड़ रहे हैं। पहले चरण में वैशाली, तारापुर, राजापाकर, रोसड़ा और बिहारशरीफ — और दूसरे चरण में कहलगांव, सिकंदरा, वारिसलीगंज, बछवाड़ा और चैनपुर जैसे इलाकों में तेजस्वी की रणनीति विफल होती दिख रही है।
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क्या तेजस्वी की जल्दबाज़ी से बिखरा महागठबंधन?
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने सीट बंटवारे की घोषणा को टालकर अपने हाथ में अंतिम नियंत्रण रखने की रणनीति अपनाई, लेकिन वही रणनीति अब विवादों का कारण बन गई। नतीजा ये कि डैमेज कंट्रोल के तहत अब महागठबंधन उम्मीदवारों को वापस लेने की अपील कर रहा है। लेकिन तेजस्वी के सामने यह चुनौती है कि अपनी छवि और गठबंधन दोनों को कैसे संभालें।
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तेजस्वी बनाम एनडीए: कौन दिख रहा मजबूत?
जहां एनडीए (नीतीश-बीजेपी गठबंधन) ने नामांकन से पहले ही अपने सारे मतभेद सुलझा लिए, वहीं तेजस्वी की अगुवाई वाला महागठबंधन अभी भी घमासान में उलझा है। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) मतदाताओं को विकल्प देने की जगह कन्फ्यूजन दे बैठे हैं — दो-दो उम्मीदवार, एक ही गठबंधन से।
तेजस्वी के सामने सियासी संकट की चुनौती
बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) मुख्य विपक्षी चेहरा हैं। उन्होंने अपनी अगुवाई में गठबंधन को जितना बड़ा किया, तालमेल उतना ही कमज़ोर हो गया। यदि यह स्थिति बनी रही तो तेजस्वी के लिए यह चुनावी लड़ाई सत्ता से ज्यादा नेतृत्व की परीक्षा बन जाएगी।
महागठबंधन में जो बिखराव आज दिख रहा है, वो न सिर्फ सीटों का नुकसान करेगा, बल्कि तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े करेगा। और यही वह बिंदु है, जहां से भविष्य की राजनीति की दिशा तय हो सकती है।
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तेजस्वी का दांव, कहीं उल्टा तो नहीं पड़ गया?
एनडीए को हराने की तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की रणनीति अगर आंतरिक तालमेल में फेल हो जाए, तो यह महज़ गठबंधन की नहीं, तेजस्वी की राजनीतिक साख की भी हार होगी। जनता विकल्प चाहती है, लेकिन जब विपक्ष खुद आपस में लड़ता नजर आए, तो मतदाता किसे चुने? तेजस्वी को अब तय करना है — क्या वे गठबंधन को एकजुट कर पाएंगे, या यह चुनाव उनके नेतृत्व की सबसे बड़ी विफलता बनकर सामने आएगा?






