ऋषि तिवारी
डॉक्टर सीमा के अनुसार मरीज पूनम ऑपरेशन से पूर्व हेवी ब्लीडिंग की शिकायत पर एक सप्ताह पहले अस्पताल आई थी। महिला को हैवी ब्लीडिंग इतनी ज्यादा थी कि वह प्रतिदिंग छह से सात पैड उपयोग कर रही थी। पूर्व में उसने कई सरकारी और निजी अस्पताल के चिकित्सकों की सलाह पर कई दवाएं ली। लेकिन कोई आराम नहीं मिला था। महिला ने बताया कि पहले उसकी दो सिजेरियन सर्जरी हो चुकी थी। बाद महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया । प्रारंभिक जांच के बाद पाया कि महिला के गर्भाशय में कई फाइब्रॉइड्स मौजूद थीं। यूट्रस चिपका हुआ था। यह गांठें गर्भाशय की आगे और पीछे की दीवारों में फैली हुई थीं। जिससे यह 14-16 सप्ताह की गर्भावस्था जितना बड़ा प्रतीत हो रहा था।
डॉ. सीमा छपराना और डॉक्टरों की टीम ने ओपन सर्जरी करने का निर्णय लिया। लेकिन सर्जरी आगे के बजाए पीछे से की गई। जांच में पता चला कि अंडाशय गर्भाशय की पिछली सतह से चिपका हुआ था। जबकि ब्लैडर गर्भाशय की अगली सतह से चिपका मिला। ऑपरेशन करते समय डॉक्टरों ने जमे हुए टिश्यू को ध्यानपूर्वक हटाया और ब्लैडर की सतह को सुरक्षित रूप से अलग किया। इसके बाद गर्भाशय को सहारा देने वाली संरचनाएं जैसे यूटेराइन लिगामेंट, फैलोपियन ट्यूब्स और अंडाशय को सावधानीपूर्वक काटकर हटाया गया।
सर्जरी के दौरान रक्तस्राव पर पूरी तरह नियंत्रण रखा गया और पेशाब की थैली की कार्यक्षमता भी सुरक्षित बनी रही। करीब तीन घंटे तक चली सर्जरी के बाद ऑपरेशन सफल रहा। ऑपरेशन के बाद मरीज को विशेष निगरानी में आईसीयू में रखा गया। मरीज को कुछ भी खाने-पीने से रोक रखा और कैथेटर के माध्यम से पेशाब की निगरानी की गई। मरीज को तरल आहार, एंटीबायोटिक्स, दर्द निवारक इंजेक्शन, एंटी-वोमिटिंग दवाएं दी गई। खून बहाव रोकने के लिए ट्रैपिक इंजेक्शन भी दिया गया। डॉ. सीमा छपराना और डॉक्टरों की टीम की लगातार निगरानी और देखभाल के चलते महिला की हालत अब स्थिर है और उन्हें शीघ्र ही अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी। इस सर्जरी में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप ने बेहोशी एवं दर्द प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाली। महिला अब पूरी तरह खतरे से बाहर है।
डॉ. सीमा छपराना ने बताया कि महिलाओं में फाइब्रॉइड्स (गांठें) एक आम समस्या है। जो गर्भाशय की मांसपेशियों में बनती हैं। यह स्थिति कई बार अत्यधिक और अनियमित मासिक रक्तस्राव, पेट में भारीपन, दर्द, बांझपन और थकावट का कारण बनती है। कई बार यह गांठें दवाओं से नियंत्रित नहीं होतीं, ऐसे में ऑपरेशन ही अंतिम विकल्प बन जाता है। समय पर सफल सर्जरी से मरीज की जान बची है। आज आधुनिक तकनीक और कुशल चिकित्सा विशेषज्ञता से गंभीर स्त्रीरोग संबंधी समस्याओं का समाधान संभव है। समय पर जांच और सही उपचार से इस प्रकार की जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है।