Monday, November 17, 2025
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दंगों का दर्द और सियासी साजिश को उजागर करती फिल्म‘2020 दिल्ली’

ऋषी तिवारी


दिल्ली दंगों की भयावह सच्चाई और उसके पीछे की राजनीतिक साजिश को पर्दे पर उतारने का साहसिक प्रयास किया है फिल्म‘2020 दिल्ली’ के निर्माता-निर्देशक देवेंद्र मालवीय ने। सीमित बजट और संसाधनों के बावजूद, इस फिल्म को सिनेमा तक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार यह फिल्म रिलीज़ हो गई है।

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कहानी की झलक

फिल्म की कहानी 24 फरवरी 2020 के उस काले दिन की सच्ची घटनाओं पर आधारित है, जब एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत दौरे पर थे और दूसरी ओर दिल्ली दंगों की आग में जल रही थी। शाहीनबाग से शुरू हुआ नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोध आंदोलन कैसे हिंसा में बदल गया, इसे फिल्म बड़े प्रभावशाली तरीके से पेश करती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इन दंगों में 53 निर्दोष लोगों की जान गई थी।

निर्देशन और प्रस्तुति

देवेंद्र मालवीय ने इस फिल्म को वन शॉट टेक्नीक में शूट किया है — यानी बिना रीटेक के पूरे दृश्यों को एक ही बार में फिल्माया गया। यह तकनीक फिल्म को और अधिक वास्तविक और प्रभावशाली बनाती है। फिल्म में पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को भी उठाया गया है — खासकर पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण, बलात्कार और हत्याओं जैसे संवेदनशील मुद्दों को बड़ी ईमानदारी से दिखाया गया है।

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कलाकारों का अभिनय

फिल्म में बृजेंद्र काला का किरदार बेहद भावनात्मक है। उन्होंने एक ऐसे सिक्योरिटी गार्ड की भूमिका निभाई है जो पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के दर्द को जीता है। उनका अभिनय दर्शकों की आंखें नम कर देता है।इसके अलावा फिल्म में समर जय सिंह, सिद्धार्थ भारद्वाज, आकाश अरोरा, भूपेश सिंह, और चेतन शर्मा ने भी अपने किरदारों को प्रभावशाली ढंग से निभाया है।

फिल्म की विशेषताएं

फिल्म की शूटिंग ज्यादातर आउटडोर लोकेशंस पर हुई है। हालांकि, सुरक्षा और अन्य कारणों से इसे दिल्ली के संवेदनशील इलाकों — जैसे सीलमपुर और जाफराबाद — में शूट नहीं किया जा सका। इसके बावजूद फिल्म की लोकेशंस और सिनेमैटोग्राफी वास्तविक माहौल का एहसास कराती है।

क्यों देखें फिल्म‘2020 दिल्ली’

अगर आप सिर्फ मसाला फिल्मों से अलग, समाजिक और सच्ची घटनाओं पर आधारित सिनेमा देखना पसंद करते हैं, तो फिल्म‘2020 दिल्ली’ आपके लिए एक जरूरी फिल्म है। यह फिल्म न सिर्फ दिल्ली दंगों की कड़वी सच्चाई को दिखाती है, बल्कि यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इंसानियत कब तक राजनीति की बलि चढ़ती रहेगी।

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