ऋषि तिवारी
वर्कशॉप की शुरुआत सीएसआईआर-आईजीआईबी के निदेशक डॉ. सौविक मैती के स्वागत भाषण से हुई और इसमें प्रमुख विशेषज्ञों जिसमें प्रो. अरिजीत मुखोपाध्याय (सैलफोर्ड यूनिवर्सिटी), प्रो. बी.के. थेल्मा (दिल्ली विश्वविद्यालय) शामिल थे और साथ में पूरे भारत से आए हुए वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञों ने प्रेज़ेंटेशन दी।
इस इवेंट का मुख्य आकर्षण रिपल्स ऑफ़ लाइट का प्रीमियर था – जो 2023 में काफी तारीफ बटोर रही फ़िल्म विज़न ऑफ़ द ब्लाइंड लेडी का 12 मिनट का सीक्वल है। फ़िल्म में पहली स्क्रीनिंग के बाद से वास्तविक जीवन में होने वाली प्रगति को दिखाया गया है, जिसमें आनुवंशिक रूप से जोखिम वाले बच्चों में प्रारंभिक नैदानिक पहल शामिल है, जिनके अंधेपन को अब संभवतः टाला जा चुका है।
“डॉक्टर बीमारियों का इलाज करते हैं, मरीजों का नहीं, और मरीज़ों को यह चिंता रहती है कि क्या वे अंधे हो जाएँगे, या क्या उनके बच्चे बीमारी से सुरक्षित रहेंगे। हमें उनके दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है” – डॉ. असीम सिल, चिकित्सा निदेशक, विवेकानंद मिशन आश्रम नेत्र निर्मया निकेतन, पश्चिम बंगाल।
ग्लूकोमा विश्व स्तर पर रिवर्स या ठीक न किए जा सकने वाले अंधेपन का प्रमुख कारण है और भारत की लगभग 1-2% आबादी इससे प्रभावित है। आनुवंशिक मामलों में, बच्चे जीवन के प्रारम्भिक चरण में ही अपनी दृष्टि खोना शुरू कर देते हैं, प्रायः बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के। आनुवांशिक जाँच और सलाह की मदद से जल्द ही पता लगाने से रोग के प्रारंभिक चरण में ही समय पर पहल संभव हो सकती है, जिससे पूरी तरह से हो जाने वाले अंधेपन को रोका जा सकता है। हालाँकि, भारत में वर्तमान में नेत्र देखभाल में आनुवंशिक जाँच के लिए सुनियोजित नीति या बीमा सहायता का अभाव है।
“चाहे दुर्लभ हो या नहीं, हर बीमारी एक बोझ है। निवारक दवा से अनगिनत जीवन वर्ष बचाए जा सकते हैं।” – प्रोफेसर बीके थेल्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय, साउथ कैंपस
“दुर्लभ बीमारियों के मामले में, हर परिवार गरीब है। उन्हें रोकने का एकमात्र तरीका जागरूकता, वकालत और नीति परिवर्तन है।” प्रसन्ना शिरोल, कार्यकारी निदेशक, ORDI
दिन का समापन इसकी नीति और समर्थन पर चर्चा के साथ हुआ, इसका उद्देश्य उचित, आनुवंशिकी-सूचित ग्लूकोमा देखभाल के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना का ड्राफ़्ट तैयार करना है। प्रतिभागियों ने सरकारी निकायों, चिकित्सा संस्थानों और नागरिक समाज को सहयोग करने का अनुरोध किया, ताकि आनुवांशिक जाँच को सभी के लिए सुलभ बनाया जा सके।
“सिर्फ एक ही उपाय है कि फिल्मों आदि के माध्यम से मरीजों में जागरूकता फैलाई जाए। उन्हें आनुवंशिक परीक्षण करवाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए ताकि ऐसी आनुवंशिक बीमारियों को रोका जा सके।” – डॉ. सुनीता दुबे, ग्लूकोमा सेवाओं की प्रमुख, श्रॉफ आई हॉस्पिटल, नई दिल्ली।