Thursday, July 17, 2025
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Maharishi Mahesh Yogi Institute: यदि मन में शिव की भक्ति हो तो दुनिया में हर काम संभव: श्रीसद्गुरूनाथ जी महाराज

ऋषि तिवारी


नोएडा। महर्षि महेश योगी संस्थान, महर्षि नगर, नोएडा द्वारा नौ दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा और पार्थिव शिव पूजन का शुभारंभ आज बड़े धूम-धाम से महर्षि नगर स्थित रामलीला मैदान में हुआ। महर्षि महेश योगी संस्थान के अध्यक्ष और महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ़ इंफार्मेशन टेक्नालॉजी के कुलाधिपति श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव द्वारा पार्थिव शिव लिंग की स्थापना कर शिव पूजन और श्री शिव महापुराण कथा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस नौ दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा और पार्थिव शिव पूजन का शुभारंभ प्रकाण्ड वैदिक पंडितों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ। भावतीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी जी के दिव्य आशीर्वाद से नोएडा के सेक्टर 110 में स्थित राम लीला मैदान, महर्षि आश्रम, महर्षि नगर में फाल्गुन मास के शुभ अवसर पर 29 फरवरी से 8 मार्च तक आयोजित किया जाएगा। इस शुभ अवसर पर प्रत्येक दिन अपराह्न 4 से 7 बजे तक शिव महापुराण कथा का आयोजन भी किया गया है। इस पावन अवसर पर श्री महाशिव पुराण कथा वाचक के रूप में परम पूज्य, आध्यात्मिक गुरू सद्गुरूनाथ जी महाराज का भक्तों को सान्निध्य प्राप्त हुआ।

आज कार्यक्रम के दिन कथा के दौरान गुरूदेव सद्गुरूनाथ जी महाराज ने कहा कि महर्षि महेश योगी भारत की महान आध्यात्मिक विभूतियों में से एक थे। उन्होंने भावातीत ज्ञान योग की खोज कर उसकी स्थापना की थी। भावातीत ज्ञान योग के माध्यम से उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में मानवीय सेवा का जो महत्वपूर्ण कार्य किया, वह बहुत ही अमूल्य है। उन्होंने भारत के साथ सम्पूर्ण विश्व में भावातीत ज्ञान योग के साथ शैक्षिक संस्थाओं की भी स्थापना की थी। उनके द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक मूल्यों की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने हेतु उनका योगदान सदैव अमर रहेगा।

कथा के दौरान गुरूदेव ने कहा कि आप जो सुनते हो, आप जो देखते हो, आप जो चखते हो। सारा प्रभाव शरीर की कामेन्द्रियां द्वारा प्रभावित होती हैं। शरीर की कामेन्द्रियां आपके मन में किसी चीज को खाने, देखने या सुनने की चाह उठती है। इस कण-कण में भगवान शिव व्याप्त हैं। एक पत्ता भी उनके इशारे के बिना नहीं हिलता। इसलिए प्रभु सुमिरन मे अपना ध्यान हमेशा लगाओं। सद्गुरूनाथ जी महाराज की प्रसिद्धि इतनी है कि हर कोई इनके द्वारा सुनाए जा रहे शिवमहापुराण कथा एवं दुःख निवारण शिविर के बार में जानता है। देश के विभिन्न प्रांतों में जहां भी गुरूदेव का आगमन होता है। लोग अपनी समस्या लेकर गुरूदेव के पास पहुंचते हैं और सद्गुरूनाथ जी महाराज किसी को निराश नहीं करते हैं। हर प्रकार की समस्या का समाधान गुरूदेव चुटकी बजाते ही कर देते हैं। इसलिए देश के हर राज्य के लोगों से सद्गुरूनाथ जी महाराज का आत्मीय लगाव रहता है।

इन्होंने सनातन धर्म के ध्वज को श्री शिव महापुराण कथा के द्वारा जन-जन तक पहुंचाने का जो भगीरथ प्रयास किया है। वह एक बहुत ही पुनीत कार्य है। कथा में आए हुए भक्तजन जब गुरूवर के मुख से श्री शिव महापुराण कथा का श्रवण करते हैं तो भाव-विभोर होकर श्री शिवभक्ति में लीन हो जाते हैं और नाचने-गाने लगते हैं। कथा के दौरान सद्गुरूनाथ जी महाराज ने रूद्राक्ष के महत्व पर भी प्रकाश डाला और बताया कि पुराणों में रुद्राक्ष को देवों के देव भगवान शिव का स्वरूप ही माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु से हुई है। रुद्राक्ष पहनने से इंसान की मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। जो इसे धारण कर भोलेनाथ की पूजा करता है उसे जीवन के अनंत सुखों की प्राप्ति होती है।

उन्होंने कहा कि भगवान शंकर की करूणा और कृपा संपूर्ण विश्व में व्याप्त है। उनकी कृपा दृष्टि से ही यह जगत संचालित है। जब तक शिव की कृपा नहीं होती, तब तक जीवन में हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। शिव पुराण में चौबीस हजार श्लोक हैं; उनमें से एक श्लोक ही नहीं बल्कि एक शब्द मात्र को भी अपने जीवन में धारण करने से इस मानव शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है। उन्होंने कहा हमें मनुष्य का शरीर तो मिल गया; लेकिन हमने इसके महत्व को नहीं समझा तो सब बेकार है। मानव शरीर का महत्व भगवान शिव की भक्ति में है। श्री शिवजी अत्यंत दयालु महादेव हैं। श्री शिव महापुराण कथा और पार्थिव शिव पूजन के अवसर पर श्री अजय प्रकाश श्रीवास्तव, अध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और कुलाधिपति, महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नालोजी, श्री राहुल भारद्वाज, उपाध्यक्ष, महर्षि महेश योगी संस्थान और पार्थिव शिव पूजन और श्री शिव महापुराण कथा कार्यक्रम के संयोजक रामेन्द्र सचान, गिरीश अग्निहोत्री, आशीष कुमार एवं हजारो श्रद्धालु उपस्थित थे।

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