सुरेन्द्र दुआ संवाददाता
नूंह। जिला में सोमवार को गुरू पूर्णिमा पर्व की धूम मची थी। जगह-जगह लंगर-भण्डारे, मीठे जल की छबील, शोभायात्रा व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन के दौरान कारसेवक भी उमस भरी गर्मी में सेवा कर पुण्य कमाया। श्रद्वालूओं ने अपने गुरू स्थान पर पहुंचकर मत्था टेक कर अपने-अपने गुरू की महिमा का गुणगान किया। भारतीय धर्म संस्कृति में इस पर्व का विशेष महत्व होता है और भक्तजनों ने समीपवर्ती आश्रम हरि मंदिर पटोदी में स्वामी धर्मदेव, शिव शनिपीठ डिढारा में महंत नरेशगिरि, जोतराम बाबा नूंह में बाबा अनिल भगत जी के अलावा हरिद्वार, वृंदावन व अन्य स्थानों के अलावा गौशालाओं में पहुंचकर गौपूजन कर गौवंश को गुड़, हरा चारा आदि सहित अन्य खादय सामग्री खिलाई।
शिव -शनि पीठ डिढारा के महंत बाबा नरेशगिरि महाराज ने बताया कि गुरु पूर्णिमा का यह पर्व महर्षि वेद व्यास को समर्पित है क्योंकि इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा करते हैं, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था,कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने अपने बाल्यकाल में अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सत्यवती ने वेदव्यास की इच्छा को ठुकरा दिया, वेदव्यास ने हठ करने लगे और उनके हठ पर माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी, साथ ही कहा कि जब घर का स्मरण आए तो लौट आना, इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर उन्होंने कठिन तपस्या की,इस तपस्या के पुण्य-प्रताप से वेदव्यास को संस्कृति भाषा में प्रवीणता हासिल हुई, तत्पश्चात उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचन की, ,वेद व्यास जी को चारों वेदों का ज्ञान था, यही कारण है कि इस दिन गुरू पूजन की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
इसी तरह, सनातन धर्म मंदिर तावडू के प्रांगण में प्रबंधन से जुड़ी पंडितानी रामप्यारी की अगुवाई में आयोजित सत्संग व भजन कीर्तन के दौरान जमकर भक्तिरस बिखेरा गया और आरती के बाद भण्डारा व मीठे जल की छबील में प्रशाद वितरण किया गया। इसी तरह, प्राचीन शिव मंदिर अस्थल नगीना पर गुरु पूर्णिमा के शुभावसर पर पौधारोपण किया गया । सर्व जाति सेवा समिति के उपाध्यक्ष रजत जैन ने कहा की प्रत्येक शुभावसर पर पौधारोपण अवश्य करना चाहिए ओर बच्चों की तरह उनकी परवरिश करनी चाहिए। प्राचीन काल से ही गुरु शिष्य की परंपरा निरंतर चली आ रही है, इसी तरह, गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर ग्राम छछैडा में हवन करके गुरु पर्व मनाया जिसमें आचार्य राजेश ने कहा यह पर्व गुरुओं को समर्पित है जिन्होंने अपने शिष्यों को अंधकार से प्रकाश की ओर बुराई से अच्छाई की ओर ले गए।
महर्षि दयानंद ने अपने गुरु विरजानंद से शिक्षा प्राप्त की। महर्षि वशिष्ठ विश्वामित्र से मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने सदानंद से सुदामा आदि अनेक महापुरुषों ने अपने गुरुओं के सानिध्य में शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने बताया की पत्नी का गुरु उसका पति ही होता है। ऐसा आर्ष ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में कहा गया है मंत्र को भी गुरु बनाया जा सकता है। इस अवसर पर लालसिंह,मुखन, किरण, जय, शिवचरण, रवि, सुरेंद्र, बिमला आदि उपस्थित रहे।