सुरेन्द्र दुआ संवाददाता
नूंह। भाजपा राज में किसानों, महिलाओं, बुजुर्गों व पत्रकारों आदि के अलावा शिकायत फरियादियों की कथित तौर से अपमान करने वाली घटनाएं आने वाले समय में सरकार के लिए भारी पड़ सकती हैं। जिला की लोक परिवाद की मासिक बैठक व शासन-प्रशासन के दरबार में फोन न उठाने का मुददा जमकर वायरल होने की बात भी इस दिशा में सरकार द्वारा कोई ठोस कदम न उठाने से आमजन के साथ-साथ सत्तारूढ दल के नेता व कार्यकर्ता खुद हताश-निराश हैं।
अधिकारियों के कार्यालयों से नदारद होने व बैठे अधिकारी को कार्य दिवस मिलने के समय में “चिट” देने के बावजूद घण्टो प्रतीक्षा के बाद बुलावा न होने से थक हार कर वह बैरंग ही लौट जाते हैं। मुख्यमंत्री मनोहरलाल व पार्टी प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ आदि के संज्ञान में यह मामला बार-बार लाने के बावजूद इस पर कोई अमल न होने से भी आमजन के प्रति पार्टी की कारगुजारी का संदेश ठीक न पहुंच पा रहा हैं और 2024 के चुनाव में विपक्ष इसका मुददा बनाकर चुनाव में भुनाने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता हैं। महामहिम राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के दौरे के दौरान चिल चिलाती गर्मी में किसानों व फरियादियों को महामहिम तक न पहुंचने की घटना जमकर सुर्खियां बटोर रही हैं।
उधर,दूसरी तरफ अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य कामरेड काले खान, उनके सहयोगी रहमूदीन, अख्तर, असगर उर्फ पप्पू खां, राजेन्द्र कुमार, पृथ्वी प्रधान, राम सहाय, हबीब खान, नन्नाह व मुकेश आदि का कहना है कि प्रजातंत्र प्रणाली के देश में सभी को अपनी बात अपने ढंग से कहने का अधिकार मिला हुआ हैं, लेकिन नूंह(मेवात) जैसे पिछडे जिले में किसी सांसद, मंत्री व सत्तारूढ दल के नेता आदि के समक्ष अपनी बात व समस्या की फरियाद करने के दौरान सुरक्षा कर्मियों द्वारा लोगों को प्रताडित करने और कार्यक्रम के दौरान मौजूद सत्तारूढ दल के नेताओं व वर्करों द्वारा चुप्पी साध लेने से अब आम जन अपनी शिकायत तक देने के लिए गुरैज कर रहा है।
महामहिम राज्यपाल के दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान प्रथम रोज किसानों व अन्य लोगों द्वारा उनके समक्ष अपनी बात रखने के दौरान के अलावा पत्रकारों को खदेडऩे की बात को विगत दिनों उत्तरप्रदेश के अतीक अहमद हत्या काण्ड की घटना से जोड़ा जा रहा हैं। जबकि, सन 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडडा अपने मेवात के दो दिवसीय दौरे के दौरान खूब पत्रकारों, किसानों, मजदूरों, व्यापारियों के संग रहे और उनकी समस्या को नजदीक से जाना था लेकिन अब सरकार में हालात बदल गए हैं।